Major Dhyan Chand Award को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा एलान किया है। उन्होंने घोषणा किया है कि खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद के नाम पर किया जा रहा है। उन्होंने अपने ट्वीटर पर लिखा, “देश को गर्वित कर देने वाले पलों के बीच अनेक देशवासियों का ये आग्रह भी सामने आया है कि खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद जी को समर्पित किया जाए। लोगों की भावनाओं को देखते हुए, इसका नाम अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार किया जा रहा है।
इससे पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ कहा जाता था। आपको बता दें कि मेजर ध्यानचंद एक भारतीय हॉकी खिलाड़ी थे जिन्हें हॉकी का जादूगर भी कहा जाता है। वे हॉकी में सर्वकालीन महान खिलाड़ियों में से एक हैं। उन्होंने 1928, 1932 और 1936 में तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक अर्जित किया था।
ध्यानचंद को उनके असाधारण गोल-स्कोरिंग कारनामों के लिए जाना जाता है। मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत के राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हर साल खेलों में उत्कृष्टता के लिए सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न, अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कारों की घोषणा की जाती है।1956 में, ध्यानचंद को पद्म भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
जानिए मेजर ध्यानचंद से जुड़ीं 10 अहम बातें…
- इलाहाबाद में जन्मे और पले-बढ़े, ध्यानचंद ने 16 साल की उम्र में भारतीय सेना जॉइन की। भर्ती होने के बाद उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। ध्यानचंद काफी प्रैक्टिस किया करते थे। रात को उनके प्रैक्टिस सेशन को चांद निकलने से जोड़कर देखा जाता। इसलिए उनके साथी खिलाड़ियों ने उन्हें ‘चांद’ नाम दे दिया।
- 1928 में एम्सटर्डम में हुए ओलिंपिक खेलों में वह भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी रहे। उस टूर्नामेंट में ध्यानचंद ने 14 गोल किए। एक स्थानीय समाचार पत्र में लिखा था, ‘यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था। और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं।’
- 1932 के ओलंपिक के लिए जब भारतीय टीम का चयन किया गया तो ध्यानचंद को किसी ट्रायल की जरूरत नहीं पड़ी और इस बार उनके भाई रूप सिंह भी टीम में शामिल हुए।
- हालांकि ध्यानचंद ने कई यादगार मैच खेले, लेकिन क्या आप जानते हैं कि व्यक्तिगत रूप से कौन सा मैच उन्हें सबसे ज्यादा पसंद था। ध्यानचंद ने बताया कि 1933 में कलकत्ता कस्टम्स और झांसी हीरोज के बीच खेला गया बिगटन क्लब फाइनल उनका सबसे ज्यादा पसंदीदा मुकाबला था।
- ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट दिग्गज सर डॉन ब्रैडमैन ने 1935 में एडिलेड में ध्यानचंद से मुलाकात की। ध्यानचंद को खेलते देख, ब्रैडमैन ने कहा कि ध्यानचंद ऐसे गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं।
- विएना के एक स्पोर्ट्स क्लब में ध्यानचंद के चार हाथों वाली मूर्ति लगी है, उनके हाथों में हॉकी स्टिक हैं। यह मूर्ति यह दिखाने का परिचायक है कि उनकी हॉकी में कितना जादू था।
- ध्यानचंद की महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह दूसरे खिलाड़ियों की अपेक्षा इतने गोल कैसे कर लेते हैं। इसके लिए उनकी हॉकी स्टिक को ही तोड़ कर जांचा गया। नीदरलैंड्स में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तोड़कर यह चेक किया गया था कि कहीं इसमें चुंबक तो नहीं लगी।
- ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। तीनों ही बार भारत ने ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता।
- दुनिया के सबसे महान हॉकी खिलाड़ियों में से एक मेजर ध्यानचंद ने अतंरराष्ट्रीय हॉकी में 400 गोल दागे। 22 साल के हॉकी करियर में उन्होंने अपने खेल से पूरी दुनिया को हैरान किया।
- बर्लिन ओलिंपिक में ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें डिनर के लिए आमंत्रित किया था। जर्मन तानाशाह ने उन्हें जर्मनी की फौज में बड़े पद का लालच दिया और जर्मनी की ओर से हॉकी खेलने को कहा। लेकिन ध्यानचंद ने उसे ठुकराते हुए हिटलर को दो टूक अंदाज में जवाब दिया, ‘हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं उसी के लिए आजीवन हॉकी खेलता रहूंगा।’