प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समुद्री सुरक्षा को लेकर हुई उच्च स्तरीय बैठक में अमेरिका और चीन आपस में भिड़ गए। समुद्री सुरक्षा पर एक उच्च स्तरीय बैठक में दक्षिण चीन सागर में चीनी कार्रवाई को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तीखी बहस हुई। बैठक में फारस की खाड़ी में जहाजों पर हमले, गिनी की खाड़ी में समुद्री लूट और भूमध्य सागर तथा अटलांटिक सागर में मानव तस्करी का भी प्रमुखता से उल्लेख किया गया। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेतावनी दी है कि विश्व के महासागर और समुद्र, जो कि सभी राष्ट्रों और लोगों की साझा धरोहर हैं, विभिन्न खतरों का सामना कर रहे हैं।
बता दें कि इस महीने भारत यूएनएससी की अध्यक्षता कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को समुद्री सुरक्षा बढ़ाने और इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की उच्च स्तरीय खुली परिचर्चा की अध्यक्षता की थी। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पांच साल पहले एक न्यायाधिकरण के फैसले में चीन के दावों को खारिज किये जाने के बावजूद दक्षिण चीन सागर के हिस्सों पर उसकी बढ़ती आक्रमकता पर चेतावनी देते हुए कहा कि वहां या विश्व में किसी भी महासागर में टकराव का सुरक्षा एवं वाणिज्य के लिहाज से गंभीर वैश्विक प्रभाव पड़ेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘दक्षिण चीन सागर में, हमने समुद्र में जहाजों के बीच खतरनाक मुठभेड़ और गैरकानूनी समुद्री दावों को लेकर उकसाने वाली कार्रवाई देखी हे।” पिछले महीने की एक घटना पर चीन की सेना ने कहा था कि उसने एक इलाके से एक अमेरिकी युद्धपोत का पीछा किया और इस इलाके के वह दक्षिण चीन सागर होने का दावा करता है। हालांकि, अमेरिकी नौसेना ने इस बयान को झूठ करार दिया था।
चीन के उप राजदूत दाई बिंग ने बैठक में अमेरिका पर पलटवार करते हुए दक्षिण चीन सागर में शांति एवं स्थिरता के लिए उसके सबसे बड़ा खतरा बनने का आरोप लगाया। उन्होंने फिलीपीन के पक्ष में दिये गये न्यायाधिकरण के फैसले को अवैध और गैर बाध्यकारी बताया। उन्होंने कहा कि दक्षिण चीन सागर में स्थिति स्थिर है और बीजिंग 10 सदस्यीय दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के साथ इस सागर पर एक आचरण संहिता पर सहमति बनाने की कोशिश में जुटा हुआ है। दाई ने यह भी कहा कि समुद्री सुरक्षा पर अमेरिका को बोलने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र समझौते का पक्षकार नहीं है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने इस समझौते का अनुमोदन नहीं किया है जो 1994 में प्रभावी हुआ था।