अफगानिस्तान में 15 अगस्त को तालिबान के सत्ता में आने के बाद हालात बहुत तेजी से बदल रहे हैं। 20 साल तक लंबा युद्ध लड़ने के बाद अमेरिका अफगानिस्तान से लौट गया है और मुल्क में तालिबानी हुकूमत के प्रारूप का महज ऐलान बाकी रह गया है। अफगानिस्तान में तालिबानी राज आने से जनता डरी सगमी हुई है तो दुनिया के कई देश बिगड़ते हालातों को लेकर चिंतित हैं। भारत भी इन्हीं देशों में से एक है, जो लगातार युद्धग्रस्त की स्थिति पर नजर बनाए हुए है। अफगानिस्तान संकट के बीच एक बड़े घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हाईलेवल ग्रुप बनाने का निर्देश दिया है, जिसमें विदेश मंत्री (ईएएम) एस जयशंकर और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल भी शामिल होंगे। सूत्रों ने इसकी जानकारी दी है।
सूत्रों के मुताबिक, अफगानिस्तान में उभरती स्थिति के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में निर्देश दिया था कि एक उच्चस्तरीय समूह, जिसमें विदेश मंत्री, एनएसए और वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, भारत की तत्काल प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करें। बताया जा रहा है कि विदेश मंत्री और एनएसए के अलावा इस ग्रुप में संबंधित मंत्रालयों के अधिकारी इसका हिस्सा होंगे।
सूत्रों की मानें तो पीएम के निर्देश पर गठित यह हाईलेवल ग्रुप पिछले कुछ दिनों से नियमित रूप से बैठक कर रहा है। बैठकों में फंसे हुए भारतीयों की सुरक्षित वापसी, अफगानी अल्पसंख्यकों की भारत यात्रा के साथ अफगानिस्तान की जमीन का उपयोग देश के खिलाफ आतंकवाद भड़काने में नहीं किया जाए, इन मुद्दों पर गहन चर्चा की जा रही है। सूत्रों ने बताया कि यह हाईलेवल ग्रुप अफगानिस्तान में जमीनी स्थिति और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं पर भी नजर रख रहा है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा आज सुबह पारित प्रस्ताव भी शामिल है।
UNSC ने अफगानिस्तान पर 7 सूत्री प्रस्ताव पारित किया
इससे पहले सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने अफगानिस्तान पर एक मजबूत 7-सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया, जिसमें मांग की गई थी कि अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल ‘किसी देश को धमकाने या हमला करने या आतंकवादियों को शरण देने या प्रशिक्षित करने के लिए नहीं किया जाए।’ इस प्रस्ताव को यूएनएससी में भारत की अध्यक्षता में पारित किया गया।
अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस लेने के बाद नाटो के सहयोगी अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा प्रस्ताव प्रस्तावित किया गया था। तीनों देशों ने जोर देकर कहा कि तालिबान को अपने आश्वासन पर कायम रहना चाहिए और अफगानों और विदेशियों के लिए एक सुरक्षित मार्ग की अनुमति देनी चाहिए जो देश छोड़ना चाहते हैं। हालांकि चीन और रूस ने इस प्रस्ताव को लेकर दूरी बना ली। बाकी 13 से अधिक देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।
इसके अलावा सूत्रों ने बताया कि भारत ने स्पष्ट रूप से बताया कि अफगानिस्तान की भूमि का उपयोग आतंकवादियों द्वारा किसी भी देश को धमकाने या हमला करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यह भी मांग की कि अफगानिस्तान को आतंकवादियों को शरण नहीं देनी चाहिए, उन्हें प्रशिक्षित नहीं करना चाहिए या आतंकवादी कृत्यों की योजना या वित्तपोषण नहीं करना चाहिए।