पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान हमेशा ही अपने दिए गए बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं। इस बार इमरान खान ने अफगानिस्तान के साथ अपने संबंधों को लेकर कहा कि पाकिस्तान सरकार तालिबान की प्रवक्ता नहीं है। अमेरिका और उसके सहयोगियों से सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में तालिबान के व्यवहार के लिए इस्लामाबाद को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इमरान खान ने 29 जुलाई को अफगान मीडिया से बातचीत में कहा कि अफगान द्वारा जिसे भी चुना जाएगा उसके साथ पाकिस्तान के जरूर अच्छे संबंध होंगे।
डॉन अखबार के मुताबिक खान ने कहा कि तालिबान जो भी कर रहा है, ‘उससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है। हम इसके लिए जिम्मेदार नहीं है और ना ही हम तालिबान के प्रवक्ता हैं।’
खान ने कहा अगर अफगान शांति प्रयास को कोई झटका लगा तो वह दोष नहीं लेगा। उन्होंने बार-बार पाकिस्तान की ओर चेतावनी का जिक्र करते हुए कहा, ‘अगर अफगान में शांति प्रयास भंग होगा तो इसका दोष हम बिल्कुल नहीं लेंगे।’
‘तालिबान के साथ समझौते के बाद अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों ने अपने-अपने सैनिक को हटाने का फैसला लिया है। बदले में उग्रवादी अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में चरमपंथी समूहों को काम करने की अनुमति नहीं देंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के अनुसार अमेरिकी सेना 31 अगस्त तक देश से बाहर हो जाएगी।’
“हम केवल अफगानिस्तान में शांति चाहते हैं”
1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था। उसके बाद अमेरिका ने आक्रमण करके उनकी सरकार को धराशाही कर दिया। अमेरिका ने अक्टूबर 2001 में अफगानिस्तान पर हमला किया था। इमरान खान ने काबुल की घटनाओं से एक बार फिर इस्लामाबाद को दूर कर करते हुए कहा कि ‘हम केवल अफगानिस्तान में शांति चाहते हैं। उन्होंने कहा अफगानों के पास अमेरिका के सैन्य समाधान का पीछा करना या समावेशी प्रशासन के साथ सुलह करने जैसे दो ही विकल्प मौजूद थे, लेकिन बाद वाला एकमात्र समाधान है।’
खान ने पूछा, ‘पाकिस्तान में 3 मिलियन से अधिक अफगनिस्तानी शरणार्थी हैं। उनमें से कई पशतुन है और कई लोग तालिबान से अच्छे से संबंध रखते हैं। पाकिस्तान इसकी कैसे जांच कर सकता है कि कौन वहां लड़ाई के लिए जाते हैं, क्योंकि पाकिस्तान के करीब 30,000 लोग हर दिन अफगानिस्तान जाते हैं। उन्होंने कहा अब इस तरह पाकिस्तान इसकी कैसे जांच करेगा।’
खान ने दावा किया कि ‘पाकिस्तान के लिए सभी अफगान शरणार्थी कैम्प में जाकर ये पता लगाना असंभव है कि कौन तालिबान समर्थक है और कौन नहीं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की कोई भौतिक रेखा की बनी हुई सीमा नहीं है और डूरंड रेखा भी काल्पनिक है। उनके अनुसार पाकिस्तान ने 90 प्रतिशत बॉर्डर हिस्से पर दीवार बना चुका है।’
उन्होंने कहा कि ‘हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है। जबकि यहां 30 लाख से ज्यादा शरणार्थी रहते है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में गृहयुद्ध होना पाकिस्तान के भी हित में नहीं है। उन्होंने पूछा कि अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए किसी का समर्थन करने में पाकिस्तान की क्या दिलचस्पी हो सकती है?’
‘1990 में पाकिस्तान ने रणनीतिक गहराई की नीति अपनाई, क्योंकि उस समय अफगानिस्तान में भारतीयों का प्रभाव था। इसके बाद उन्होंने कहा अफगान जिसे भी चुनेंगे उसके साथ पाकिस्तान के अच्छे संबंध होंगे। अब हमारा कोई पसंदीदा नहीं है।’
पूर्व राजदूत की बेटी की अपहरण मामले में खान ने कहा कि ‘इस्लामाबाद में अपहरण के बाद अधिकारियों ने पीड़िता के सटीक मार्ग का पता लगाया और टैक्सी चालकों का पता लगाया। जांच अधिकारियों ने उनसे पूछताछ की। दुर्भाग्य से जो राजदूत की बेटी कह रही है वो कैमरे में नहीं दिख रहा है। उनकी बेटी कहती है कि उसे एक टैक्सी में रखा गया और बेरहमी से पीटा गया।’
खान के मुताबिक अफगान जांच दल को सारी जानकारी सौंप दी जाएगी। इमरान खान ने बताया कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में 150,000 नाटो सैनिकों की विफलता में कोई भूमिका नहीं निभाई है । यह ठीक वैसा ही है जैसा अमेरिकियों ने वियतनाम में किया था। जब वे वियतनाम में सफल नहीं हो पाए तो उन्होंने कंबोडिया या लाओस के विद्रोहियों को दोषी ठहरा दिया था।
उन्होंने कहा कि ‘एक समय पाकिस्तान को बताया गया था कि तालिबान के मुख्य ठिकाने उत्तरी वजीरिस्तान में है। वे हमें कार्रवाई करने के लिए कहते रहे और आखिरकार चार या पांच साल बाद हमने कार्रवाई की, लेकिन क्या फर्क पड़ा और तो और दस लाख लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हो गए।’
उन्होंने कहा कि ‘अमेरिकियों के लिए तालिबान से निपटने में उनकी स्थित ही बेहतर बता सकती है। जब 150,000 नाटो सैनिक थे, तभी तालिबान से बात करने का सही समय था। वे तालिबान से समझौता करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं जब देश से बाहर निकलने की तारीख दी गई है और कुछ हजार सैनिक बचे हैं?” इमरान खान ने पूछा कि पाकिस्तान से संचालन करके अमेरिका को क्या हासिल होगा।’