उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ और रामपुर की लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की है। 26 जून 2022 को इन उपचुनावों के नतीजे आए, और इस तारीख को सूबे के चुनावी इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज करके चले गए। रामपुर की सीट पर बीजेपी के घनश्याम लोधी ने समाजवादी पार्टी के नेता आसिम राजा को मात दी। वहीं, आजमगढ़ की सीट पर भगवा दल के दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ ने धर्मेंद्र यादव को हरा दिया। रामपुर में बीजेपी पहले भी जीत दर्ज करती आई है, लेकिन आजमगढ़ की जीत को कुछ जानकार ‘M+Y’ समीकरण का ध्वस्त होना बता रहे हैं।
आजमगढ़ में बेहद करीबी रहा मुकाबला
बीजेपी प्रत्याशी और लोकप्रिय भोजपुरी ऐक्टर दिनेशलाल यादव निरहुआ ने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को बेहद करीबी मुकाबले में 8,679 वोटों के अंतर से मात दी। निरहुआ को 312768 वोट मिले, जबकि धर्मेंद्र यादव के नाम पर 304089 वोट गिरे। हालांकि, जीत हार के इस आंकड़े में सबसे बड़ी भूमिका बीएसपी कैंडिडेट शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली की रही, जिन्होंने 266106 वोटों के साथ मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। इस तरह निरहुआ को 34.39 फीसदी, धर्मेंद्र यादव को 33.44 फीसदी और गुड्डू जमाली को 29.27 फीसदी वोट मिले।
अखिलेश यादव की बेरुखी ने बिगाड़ा खेल?
आजमगढ़ में एक बात की चर्चा जोरों पर है कि उपचुनावों में प्रचार के लिए अखिलेश का न आना भी सपा को भारी पड़ा है। अखिलेश यादव आजमगढ़ से सांसद थे, और विधानसभा चुनावों में करहल से जीत दर्ज करने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी थी। बेहद करीबी मुकाबले में धर्मेंद्र यादव की हार के बाद सोशल मीडिया पर भी इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि यदि अखिलेश अपने चचेरे भाई के चुनाव प्रचार के लिए आजमगढ़ आए होते तो नतीजे कुछ और हो सकते थे। हालांकि सपा के फायरब्रांड नेता आजमगढ़ चुनाव प्रचार के लिए आए थे, लेकिन उसका कुछ खास फायदा नहीं मिला।
आजमगढ़ में ध्वस्त हुआ ‘M+Y’ समीकरण?
आजमगढ़ में ‘मुस्लिम+यादव’ समीकरण के फेल होने को लेकर सियासी जानकारों के अलग-अलग रुख हैं। कुछ का मानना है कि इस समीकरण में सेंध लगा पाने में बीजेपी कामयाब हुई है, तो कुछ धर्मेंद्र यादव की हार की बड़ी वजह गुड्डू जमाली का मजबूती से चुनाव लड़ना भी मान रहे हैं। वैसे, निरहुआ ने 2019 के चुनावों में हार के बाद भी इस सीट पर काफी मेहनत की थी और कार्यकर्ताओं से जुड़ाव बनाए रखा था। ऐसे में सिर्फ समीकरणों को इस जीत के लिए जिम्मेदार बताना बीजेपी के नए ‘जाएंट किलर’ के साथ नाइंसाफी होगी।
विपक्षी पार्टियों को सावधान होने की जरूरत
आजमगढ़ और रामपुर के नतीजे विपक्षी दलों को यह संदेश देते हैं कि किसी भी सीट को अपना गढ़ मानना अब भूल साबित होगी। आजमगढ़ और रामपुर, दोनों ही सीटों के समीकरण समाजवादी पार्टी के लिए मुफीद थे, लेकिन दोनों ही सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा। इससे एक तरफ समाज के लगभग हर वर्ग में बीजेपी की पैठ बढ़ते जाने का संकेत मिलता है, तो दूसरी तरफ विपक्ष की जमीन के खिसकते जाने का भी संकेत मिलता है। ऐसे में यह देखने लायक होगा कि विपक्ष आगामी चुनावों में भगवा दल की चुनौतियों से कैसे निपटता है।