पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की प्रतिबंधित सूची में शामिल करने के लिए भारत और अमेरिका एक संयुक्त प्रस्ताव लाए थे। लेकिन आखिरी वक्त में चीन ने इसे बाधित कर दिया। अमेरिका और भारत ने सुरक्षा परिषद की अल कायदा प्रतिबंध समिति के तहत मक्की को एक वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने के लिए संयुक्त प्रस्ताव पेश किया था। अमेरिका पहले ही मक्की को आतंकवादी घोषित कर चुका है।
ऐन मौके पर चीन ने अड़ाई टांग
मक्की लश्कर-ए-तैयबा के सरगना और 26/11 मुंबई हमलों के मुख्य साजिशकर्ता हाफिज सईद का रिश्तेदार है। 74 साल का मक्की, लश्कर-ए-तैयबा में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता रहा है, जिसे अमेरिका पहले आंतकवादी संगठन घोषित कर चुका है। ऐसा बताया जा रहा है कि भारत और अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की और अल कायदा प्रतिबंध समिति के तहत मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने के लिए एक संयुक्त प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन चीन ने इस प्रस्ताव में ऐन मौके पर टांग अड़ा दी। चूंकि समिति के सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिये जाते हैं। इसलिए, चीन के संयुक्त प्रस्ताव पर अपना रुख बदलने तक इसे पारित नहीं कराया जा सकता।
पहले भी कई प्रस्ताव बाधित कर चुका है चीन
चीन ने भारत और उसके सहयोगियों द्वारा पाकिस्तानी आतंकवादियों को सूचीबद्ध करने के प्रयासों को इससे पहले भी कई बार बाधित किया है। भारत ने मई 2019 में संयुक्त राष्ट्र में एक बड़ी राजनयिक जीत हासिल की थी, जब वैश्विक निकाय ने पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को ‘‘वैश्विक आतंकवादी’’ घोषित कर दिया था। ऐसा करने में भारत को करीब एक दशक का समय लग गया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15-सदस्यीय निकाय में चीन एक मात्र ऐसा देश था, जिसने अजहर को ब्लैक लिस्ट में डालने के प्रयासों को बाधित करने की कोशिश की थी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच राष्ट्र – अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और रूस – स्थायी सदस्य हैं। इनके पास ‘वीटो’ का अधिकार है यानी यदि उनमें से किसी एक ने भी परिषद के किसी प्रस्ताव के विपक्ष में वोट डाला तो वह प्रस्ताव पास नहीं होगा।
“खुद को भी जोखिम में डाल रहा चीन”
इस बीच, नयी दिल्ली में सरकारी सूत्रों ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति के तहत पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के भारत और अमेरिका के संयुक्त प्रस्ताव को बाधित करने का चीन का फैसला आतंकवाद का मुकाबला करने के उसके दावे के विपरीत है और उसके ‘‘दोहरे मापदंड’’ का संकेतक है। उन्होंने कहा कि ऐसे खूंखार आतंकवादियों को प्रतिबंधों से बचाना केवल चीन की साख को कमजोर करेगा और आतंकवाद के बढ़ते खतरे के बीच वह खुद को भी जोखिम में डालेगा।