बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना की अपनी मांग को दोहराते हुए रविवार को कहा कि यह राष्ट्रीय हित में है और इससे विकास की दौड़ में पिछड़ रहे समुदायों की प्रगति में मदद मिलेगी। उच्चतम न्यायालय में केंद्र की ओर से दाखिल हलफनामे के बारे में पूछे जाने पर नीतीश ने संवाददाताओं से कहा कि यह बिल्कुल सही नहीं है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह मामला सीधे तौर पर जातिगत जनगणना के मुद्दे से संबंधित नहीं था। केन्द्र ने हलफनामे में जाति के आधार पर जनगणना को एक तरह से खारिज कर दिया गया था।
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली आए जनता दल (यू) नेता ने जातिगत जनगणना के खिलाफ सभी तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि इसकी मांग न केवल बिहार बल्कि कई राज्यों से आ रही है। नीतीश कुमार ने कहा कि वह इस मुद्दे पर बिहार में विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों से बात करेंगे और उसके बाद आगे की रणनीति का खाका तैयार करेंगे। उन्होंने देश भर में जातिगत जनगणना के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए राज्य के एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था।
हालांकि, केन्द्र ने गुरुवार को उच्चतम कोर्ट को बताया कि पिछड़े वर्गों की जातिगत जनगणना का काम प्रशासनिक रूप से कठिन और बेहद बोझिल है और इस तरह की जानकारी को जनगणना के दायरे से बाहर करना एक सचेत नीति के तहत लिया गया फैसला है। शीर्ष अदालत में दायर एक हलफनामे में सरकार ने कहा है कि सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य में जातिगत जनगणना 2011 में जाति गणना गलतियों और अशुद्धियों से भरी थी।
बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन सरकार चला रहे नीतीश ने कहा, ‘‘जातिगत जनगणना देश के हित में है और इससे देश के विकास में मदद मिलेगी।’’ केन्द्र के रुख के बाद, बिहार में कई भाजपा नेताओं ने इस कदम का जोरदार बचाव किया और जातिगत जनगणना की आवश्यकता पर सवाल उठाया। भाजपा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राजनीतिक रूप से उलझे हुए मुद्दों पर उसका रुख कई राजनीतिक दलों से अलग हो सकता है, जिसमें उसके कुछ सहयोगी दल भी शामिल हैं। भाजपा ने कहा कि वह ‘‘सब का साथ, सबका विकास’’ के सिद्धांत में विश्वास करती है।