संसद का मानसून सत्र गुरुवार को समाप्त हो चुका है। इस बार सत्र में कामकाज कम और हंगामा अधिक देखने को मिला। संसद सत्र बाधित को लेकर पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर हमला बोल रहा है। गुरुवार को विपक्षी पार्टियों के 15 नेताओं ने एक संयुक्त बयान जारी कर केंद्र पर कार्यवाही को बाधित करने का आरोप लगाया। इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, आनंद शर्मा और अधीर रंजन शामिल हैं। इसके अलावा एनसीपी प्रमुख शरद पवार, सपा के रामगोपाल यादव, शिवसेना के संजय राउत, डीएमके के तिरुचि शिव, टीआर बालू , आरजेडी सांसद मनोज झा और माकपा के इलामराम करीम हैं।
आईयूएमएल के ईटी बशीर, सीपीआई के बिनॉय विश्वम, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन और केरल कांग्रेस (एम) के थॉमस चाझिकादान भी शामिल हैं। विपक्षी नेताओं ने केंद्र के कथित “सत्तावादी रवैये” की निंदा करते हुए, उन्होंने राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को उठाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
विपक्ष के अुसार, उन्होंने 4 प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करने का मुद्दा उठाया था। इसमें पेगासस जासूसी विवाद, कृषि कानूनों के के खिलाफ किसानों का आंदोलन, मुद्रास्फीति और संसद में बिगड़ती आर्थिक स्थिति है। विपक्ष ने हमला बोलते हुए कहा कि ये पूरी तरह से साफ हो गया है कि वर्तमान सरकार संसदीय जवाबदेही में विश्वास नहीं करती है। केंद्र पेगासस पर बहस करने से भाग रही है, जिसके परिणास्वरुप कामकाज में गतिरोध पैदा हुआ है। विपक्षी दलों ने सरकार से ईमानदारी से जुड़ने का अनुरोध किया था लेकिन सरकार अभिमानी, निष्ठाहीन और अडिग रही।
इसके अलावा विपक्षी नेताओं ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने संयुक्त विपक्ष को बदनाम करने और संसद में निरंतर व्यवधान के लिए इसे दोष देने के लिए एक भ्रामक अभियान चलाया है। गतिरोध की जिम्मेदारी पूरी तरह से सरकार के ऊपर है, जो अभिमानी और अडिग है और स्वीकार करने से इनकार करती है। उन्होंने 11 अगस्त को राज्यसभा में महिला सांसदों के साथ कथित बदसलूकी की निंदा की।
गौरतलब है कि इस बार संसद का मानसूत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया है। हंगामे के चलते पूर्व निर्धारित समय से दो दिन पहले ही बुधवार को संसद की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई। मानसून सत्र की शुरुआत से ही संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में लगातार गतिरोध बना रहा। यही वजह है कि मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में मात्र 22 प्रतिशत कामकाज हो पाया तो राज्यसभा में यह महज 28 प्रतिशत रहा। सत्र के दौरान संविधान (127वां संशोधन) विधेयक समेत कुल 20 विधेयक पारित हुए।