दुनिया के दो सबसे कट्टर दुश्मनों ने हाथ मिला लिया है. दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया (North and South Korea) लंबे से बंद पड़ी कम्युनिकेशन लाइन (Communication Lines) फिर से शुरू करने और आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमत हो गए हैं. बता दें कि दोनों देश एक-दूसरे के ऊपर गंभीर आरोप लगाते रहे हैं. उत्तर कोरिया कई बार कह चुका है कि पड़ोसी दक्षिण कोरिया उसके खिलाफ साजिश रच रहा है.
April से चल रही थी कोशिश
हमारी सहयोगी वेबसाइट WION में छपी खबर के अनुसार, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति कार्यालय ने बताया कि दोनों देशों के बीच संचार लाइन फिर से शुरू करने और आपसी सहयोगी बढ़ाने पर सहमति बनी है. राष्ट्रपति मून जे-इन (President Moon Jae-in) और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन (North Korean leader Kim Jong Un) के बीच अप्रैल के बाद से कई बार पत्रों का आदान-प्रदान हुआ, जिसके बाद दोनों नेता संबंध सामान्य करने पर राजी हुए हैं.
North ने खत्म किए थे Contact Links North ने खत्म किए थे Contact Links
बढ़ते तनाव के मद्देनजर उत्तर ने पिछले साल 16 जून को दक्षिण के साथ सभी तरह के संपर्क खत्म कर लिए थे. इतना ही नहीं, उसने दक्षिण पर पैम्फलेट प्रोपेगेंडा का आरोप लगाते हुए अपने सीमावर्ती शहर केसोंग स्थित इंटर-कोरियाई संपर्क कार्यालय को भी बंद कर दिया था. दरअसल, उत्तर कोरिया का कहना था कि दक्षिण बैलून के जरिए पैम्फलेट फैलाकर उसके खिलाफ दुष्प्रचार कर रहा है. उसकी तरफ से कहा गया था कि पैम्फलेट का इस्तेमाल लीडर किम जोंग उन के खिलाफ लोगों को भड़काने के लिए किया जा रहा है.
काफी पुराना है Korean Conflict
पिछले महीने दक्षिण कोरियाई मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा था, ‘इंटर-कोरियन कम्युनिकेशन चैनल को बिना किसी शर्त के तुरंत बहाल किया जाना चाहिए. हम उत्तर कोरिया से संचार लाइनों को बहाल करने का आग्रह करते हैं’. अब दोनों देश इस पर राजी हो गए हैं. गौरतलब है कि कोरियाई संघर्ष 70 साल से भी पुराना है. इसे दुनिया के सबसे लंबे संघर्ष का नाम दिया जाता है. पड़ोसी होने के बावजूद दोनों देशों में कभी खास अच्छे रिश्ते नहीं रहे.
कुल 50 Lines हुई थीं चालू
पूर्व सोवियत सेना द्वारा सियोल और हेजू के बीच टेलीफोन लाइन बंद करने के 26 साल बाद दोनों देशों के बीच पहली हॉटलाइन सेवा 22 सितंबर, 1971 को शुरू हुई थी. 1971 के बाद से उत्तर और दक्षिण के बीच कुल 50 लाइनें स्थापित की गईं. जिसमें दो कोरियाई राष्ट्रपति और शेष सैन्य और खुफिया एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल की जाती थीं.