देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर चल रही है. साथ ही तीसरी लहर के अगले तीन महीने में आने की संभावना भी जताई जा रही है. कोविड के खतरे के चलते पिछले साल से ही देश में प्राइवेट और सरकारी स्कूल बंद हैं लेकिन अब छात्रों के स्कूल छोड़ने को लेकर एक चिंता पैदा करने वाला आंकड़ा सामने आ रहा है.
ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन की ओर से किए गए अध्ययन में सामने आया है कि देश के प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले करीब 15 फीसदी छात्रों ने स्कूल छोड़ दिया है. जबकि सरकारी की बात करें तो ऐसे बच्चों की संख्या 30 फीसदी से ज्यादा है जिन्होंने स्कूलों से नाम कटा लिया है या स्कूल छोड़ दिया है.
आईपा के अध्यक्ष एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने बताया कि स्कूलों से बढ़े इस ड्रापआउट के बाद बाल मजदूरी की समस्या भी सामने आ रही है. कोरोना के बाद बड़ी संख्या में शहर छोड़कर गांव गए बच्चों और शहरों में स्कूल छोड़कर घरों में बैठे बच्चों के बाल श्रम में लगने की आशंका है.
अग्रवाल कहते हैं कि अगर डाटा निकाला जाए तो बाल मजदूरों की संख्या दोगुनी होने की भी सम्भावना है जो कि कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक है. इन बच्चों के कभी स्कूलों में न लौटने का खतरा भी बढ़ गया है. ऐसे बहुत सारे बच्चे हैं जो स्कूल गए हैं और फिर छोड़ चुके हैं, उन्हें दोबारा स्कूलों में लाना काफी कठिन हो जाएगा.
बहुत सारे ऐसे बच्चे हैं जो स्कूल छोड़ने के बाद कमाना शुरू कर चुके हैं. अब सबसे बड़ी समस्या ऐसे बच्चों को वापस स्कूल में दाखिल करने की है जिस पर सोचना चाहिए. इसके साथ ही अभिभावकों के सामने कोरोना काल में प्राइवेट स्कूलों की फीस भी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है. जिसे न भर पाने की स्थिति में स्कूल छोड़ा जा रहा है. अशोक अग्रवाल कहते हैं कि घर पर चल रही ऑनलाइन पढ़ाई या सेल्फ स्टडी के रूप में की जा रही पढ़ाई भी छात्रों को स्कूल और पढ़ाई से दूर कर रही है.
बजट स्कूल हुए बंद, स्कूलों ने घटाया स्टाफ
कोरोना के चलते फीस न मिलने के कारण देशभर में करीब 20 फीसदी बजट स्कूल भी बंद हो चुके हैं. वहीं प्राइवेट स्कूलों ने कम से अपने 30 फीसदी शिक्षक और अन्य स्टाफ को भी हटा दिया है. जबकि बाकी बचा 70 फीसदी स्टाफ औसतन 50 फीसदी की सैलरी पर काम कर रहा है.
शिक्षा के स्तर में होगी भारी गिरावट
अशोक कहते हैं कि इस समय ऑनलाइन कक्षाएं भी सभी स्कूलों में नहीं हैं. सिर्फ कुछ स्कूल ही इस तरह से छात्रों की पढ़ाई करा रहे हैं. सरकारी स्कूलों का हाल काफी खराब है. वहीं सरकार के पास पब्लिक एजुकेशन सिस्टम को सुधारने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में बहुत बड़ी संख्या में बच्चों की शिक्षा खतरे में है और इससे शिक्ष का स्तर आने वाले समय में गिरेगा.